इस उम्मत में अक़ीदे के साथ साथ अखलाक़ का भी मसला हैंl✍️


इस उम्मत में अक़ीदे का ही मसला नहीं है, ये बात बहुत साफ है जो हमारे इमाम ने फरमाई है, हमारे बुजुर्गों ने फरमाई है कि इस उम्मत में "मेरे ऊपर ये बात रोशन हो गयी है कि इस उम्मत में अक़ीदे के साथ साथ अखलाक़ का भी मसला  है।



💐🏵️और अख़लाक़ कोई एक लाइन नहीं है जिसको एक लाइन में लिख कर समझा दिया जाए बल्कि ये वो अमल ईमान की शरह और हुस्न जन है कि जिसके न रहने से जैसे इंशान के जिस्म पर कोई लिबास  ही न हो और वो बगैर लिबास के रहता हो। आप सोच सकते हैं कि एक बगैर लिबास के इंशान किस तरीके से दिखता है।
‏امام احمد بن حنبلؒ سے پوچھا گیا:

حسن اخلاق کیا ہے؟
فرمایا: یہ کہ تم لوگوں کی باتوں سے چشم پوشی کرو!

[شعب الإيمان للبيهقي ٧٧٢٦]

🏵️💐जिससे ये बात साफ पता चलती है खाली अहले सुन्नत वल ज़मात का अपने आपको कहलवाना काफी नही है। औलिया की मोहब्बतें बातों में ही नहीं बल्कि जिंदगी में दिखनी जरूरी है हदीशे क़ुदशी हैं,अल्लाह जो इनाम बंदे को अता करता है उस इनाम की झलक उसकी जिंदगी में भी दिखना उसे पसंद है।

🏵️💐दींन को पढ़ना और दींन को क़ल्ब में उतर जाना या उतार लेना या रोशन हो जाना इनमे में फर्क है, जरूरी नही की जिससे हम दींन की तालीम ले रहे हो वो राहे रास्त पर हो हक पर हो।

🏵️💐क़ुरान ने तो साफ़ मना कर दिया कि ऐसे लोगों से इल्म हासिल करने से जिसके दिल गफ़लत में पड़े हैं उनसे हरगिज़ हरगिज़ न दींन कि तालीम और न दींन के मामलात में सलाह मशविरा करे बल्कि इसके लिए शख्ती से मना फ़रमाया जिसका खुलासा, तफ़सीर है और जगह जगह इसका  क़ुरान में बयान है।

🏵️लेकिन अब हमारे बुर्ज़ुर्गों का क्या मामला रहा है इल्म, हदीस, दर्स- तदरीस हासिल करने का इसके मुत्तालिक हमारे सुयूख, हमारे अकाबिर क्या फ़रमाते थे क्या सोचते थे क्या बोलते थे? आये इस पर गौर करते हैं तारीख़ के बरख खोलते हैं कमोबेश 1100 साल पुराने।

🏵️तो सबसे पहले तो में ज़िक्र करता हूं हमारे गौसे आज़म रदिअल्लाहो ताला अन्हु के  पीरो के पीर का यानी आपके ज़ामने से पहले के आपके लकड़ पीर वो फ़रमाते है मैंने

हज़रत सैय्यदना हुज़ूर शैख़ अबु बकर शिबली रहमतुल्लाह अलैही🤲🌷🌺🌺

🏵️💐 आप फरमाते है कि मैंने 30 साल तक , हदीश- क़ुरान इल्मे दींन को हासिल किया इसके बाद जब मेरा सीना नूर से ख़ुर्शीद तुलु हुआ, अहलेबैत से क़ुर्बियत बढ़ गयी । मुझे हुक्म हुआ तो में इल्म में आगे बढ़ा इल्मों हुसूल के लिए लेकिन जिसके पास जाता उन आलिमे दींन को अंधरे में पाता और में उनसे कह देता की तुम लोग अंधरे में हो बल्कि अल्फ़ाज़ तो ये है कि आप फ़रमाते है कि तुम लोग खुद तरीकों में हो  और राहे रास्त पर नही हो में नूरी रास्ते, हक़ रास्ते पर हूँ, इसलिए में तुमसे दर्स इल्म हासिल नही करूँगा* उन उलमाऐ दींन को आपकी बात बड़ी गिरया और अजीब तर मालूम होती.... हत्ता की आप कई साल मूसलसल ऐसे ही दर ब दर हक़ उलमाओं की तलाश में घूमते रहे और कुछ वक्त के बाद आपकी जुस्तजू रब ने पूरी फरमाई, आप जुनैद बग़दादी रदिआल्लाहो ताला अन्हु से मिले।


🏵️💐पता ये चला कि क़ौले रसूलﷺ भी पूरा हो गया और दुनिया मे भी हमको और सबको पता चल गया कि कैसे 1000 में से 999 जहन्नमी होंगे और कैसे 1 जन्नत में जायेगा।


🏵️ और ये बुजुर्ग हैं हमारे सिलसिले के हज़रत अबु बकर शिबली रहमतुल्लाहि अलैही जिनका नाम मर्तबा सिलसिले में बहुत बड़ा हैl

🏵️ ये बात तो 1000 से 1100 साल कमोबेश पुरानी बात है जब इतने फ़ितने भी नही थे और आज अब तो और ज़्यादा नाज़ुक मामलात है, बहुत फ़ितने है कौन राहे रास्त पर है कौन नहीं ये बस उसके फज़ल की औलिया की करम की बात होगी जिसका ख़ात्मा बस ईमान पर हो।

🏵️💐बस हमारी नज़र हर वक़्त हमारे औलिया पर होनी चाहिये,उनकी तालीम पर होनी चाहिए खुदा की कसम औलिया की तालीम से इससे जरा भी हटे तो कोई मुसलमान हो वो दोनों जँहा से चले जाएंगे और न ईमान ही बचा पाएँगे ।

🏵️💐हमारे बुजुर्गों हमारे सिलसिले का यही दर्स है यही सबक है अहले ईमान के लिए जरूरी है कि *सब्र, सुक्र, खामोशी, ज़िक्र, अहसान और मोहब्बत को अपने दिल मे बसाए और रचाये !! यही दींन भी है और इन्ही पर दींन के पिलर इसकी बुनियाद क़ायम और दायम है*

नोट:👇👇
इन बातों पर केवल औलिया की ज़मात ही साबित कदम रह सकती है और ज़म सकती है या मोमिन की और न तो इस रास्ते पर टिक सकते हैं ना ठहर सकते हैं

سلسلہ طریقت :سلسلۂ عالیہ رئیسی خوشحالی💐               ,शादाब अनवर रईसी ख़ुशहाली                   

شاداب انور رئیسی  ✍️

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