सरकारे बगदाद हुज़ूर गौ़से पाक हज़रत शैख़ ऐ अव्वल सुल्तानुल औलिया हज़रत अब्दुल क़ादिर, जीलानी अल-सय्यद मोहियुद्दीन अबू मुहम्मद अब्दुल क़ादिर जीलानी अल-हसनी वल-हुसैनी रदिअल्लाहो ताला अन्हु।
✍🏻 *हुज़ूर पाकﷺ की अहलेबैत (رضي الله عنهم) ने इल्म की बुनियाद का हकीकी उसूल क्या दिया है* ❓
🌺सरकारे बगदाद हुज़ूर गौसे पाक अबू मुहम्मद महबूबे सुब्हानी गौसुस्स-क़लैन गौसुल आ'ज़म हज़रते शैख़ मुहियुद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी(رضي الله عنهم) फरमाते है जिन :
*उलमा, आलिमे दींन में 3 खशलते (चीज़े) मौज़ूद हो उनकी सोहबत इख़्तियार किया करो*
🌺इसका मतलब ये हुआ कि उम्मत के लिए हक़ीक़त में इल्म का फैज़ान इनके पास है वो कौन लोग हैं आये देखते हैं।
*1- इल्म 2- अमल, 3- अहसान*
इल्म, अमल इससे हम सभी वाकिफ हैं लेकिन लफ्ज़ *अहसान* जो सरकार ने हुज़ूर गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैहि ने ज़िक्र किया है इसकी निस्बत अहलेबैतत
(رضي الله عنهم) से है जिसको अल्लाह वालों ने नकल किया है । और जब तक ये सिफ़त इल्म में शामिल नहीं होंगी तब तक वो औलिया से हासिल होने वाला फ़ैज़ इल्म नूरानी को हासिल नहीं कर सकता है और जब तक इल्म इरफ़ानी नहीं बनेगा वो इल्म एक गुमराही का सबब बन जायेगा औऱ ये इल्म एक दिन खुद उस इंशान की उसकी जात क लिए हलाकत का वाइस बन जायेगा।
🌺हकीकत में सब्र और अहसान ये खुद अहलेबैत की जात है इन नामों में अहलेबैत(رضي الله عنهم) की सिफ़त और कमालात है। ये वो पर्दे है जिनको औलिया अल्लाह वालों ने जब इन्हें अपने क़ल्ब और कसफ़ में पाया तो उसकी हक़ीक़त में यही लिखा कि *सब्र, अहसान ये अहलेबैत(رضي الله عنهم) हैं।
🏵️ औलिया हक़ीक़त में अल्लाह की ज़मीन के वारिस है जिनसे मुराद *अहलेबैत (رضي الله عنهم) है, औलिया अल्लाह, सालिहा, सिद्दीकिंन हैं अल्लाह वाले हैं जिनके सदके में इस दुनिया का निज़ाम क़ायम और दायम हैं। इनकी बारगाह में अदबो एहतराम के बगैर न आना अपने ईमान को खो देना है और इनकी तजीमो तौकीर के बगैर, अदब के बगैर इल्म को समझना न मुमकिन है न मुमकिन है न मुमकिन है। बल्कि खुद इल्म की बेअदबी है और अपनी जान को हलाकत में डालना है।
🏵️ ये औलिया अल्लाह इन्हीं अहलेबैत(رضي الله عنهم) के दर से ज़मीनों आसमान के ख़ज़ाने पाते हैं तब ये औलिया अल्लाह मख़लूक़ को उनकी क़ल्ब की मोहब्बतों की बिना पर दींनो- दुनिया के ख़ज़ाने तकसीम करते हैं ।
🏵️इल्म, इल्म ही रहता है जब तक वो किताबों में रहता है, लेकिन यही इल्म जब किसी अल्लाह वालों की ज़ियारत कर लेता है अदब के मुक़ाम से, तो यही इल्म, इल्मे इरफ़ानी नूरानी बन जाता है।
🏵️इल्म जब तक इरफ़ानी, नूरानी न बन जाये तब तक किसी शक्स के इल्म की मिसाल ऐसे हैं, जैसे कोई घर बगैर पिलर के तामीर किया गया हो, जो कभी भी बिखर भी सकता है, टूट भी सकता है जिससे जान माल दोनों का नुक्सान होना तय है और जो उसके आस पास होता है उसका भी नुकसान होना सो फीसदी तय है।
🏵️ये रब का सुक्र और अहलेबैत(رضي الله عنهم) का सदका, खैरात है दुनिया को, की जिसके सदके में इस मख़लूक़ को रब ने इंशानों में ख़ाश अपने बंदों में अहसान की सिफ़त अता फरमाई अगर ये दुनिया में ये अहसान न होता तो दुनिया का निज़ाम बिखर कर तहस नहस हो गया होता।
🏵️🌸यही कौल अल्लाह वालो के मिलते हैं इल्म के तालुक्क तसव्वुफ़से।
🏵️इस बात से ये भी मालूम हुआ कि खाली सनद याफ़्ता डिग्री लेना ही काफी नहीं है, जब तक इन डिग्रियों में मोहब्बत अहलेबैत (رضي الله عنهم), औलिया अल्लाह शामिल नही होगी तब तक ये इल्म अपने खास मकसूद को पहुँचना तो बहुत दूर की बात है, इस बुनियाद के बगैर न तो आवामो-खाश को फायदा पहुचाया जा सकता है और न खुद को । ऐसे इल्म से शहद नहीं बल्कि ज़हर बनता है। जो इल्म औलिया की मोहब्बत के बगैर पाया जाए। उनसे औलिया की शान में क़सीदे नहीं बल्कि उनके क़ल्ब और ज़ुबान गुस्ताखियों सबब बे अदबी के हदों से बाहर निकल जाती है। मुसलमानों को ऐसे लोगों की शोहबत से बहुत दूर रहना चाहिए और अपने ईमान की हिफाज़त करना चाहिए।
🏵️🌸"बल्कि आला हज़रत, इमामे अहले सुन्नत फ़ाज़ले बरेलवि रहमतुल्लाह अलैहि फरमाते है अपनी किताब में एक हवाला देकर बताते हैं कि *सनद, डिग्री, इल्म की दलील नहीं है, बहुतेरे इल्म वाले बहरे होते हैं यानी बे इल्म होते हैं।"*
*किताब फतावा- ऐ रिज़बिया*
🌺मेरे अज़ीज़ों ये इल्म नूरानी नबी ऐ पाकﷺ की अहलैबैत(رضي الله عنهم) की मोहब्बत से है, और ये मोहब्बत रफ़्ता रफ़्ता ख़ुलूसे दिल के अदब के साथ अमल से है जो जितना अल्लाह वालों की बारगाह से ताल्लुक को जोड़ेगा और जोड़ता जाएगा उसकी दिल की कैफियत बदलती जाएगी।
🌺अपने दिल को अल्लाह वालों से जोड़ने के लिए नरम लहज़ा, लोगों पर अहसान, मख़लूक़ से मोहब्बत औलिया अल्लाह से ताल्लुक को जोड़ने का सबसे बेहतरीन अमल है जिसे ख़ुद ग़रीब नवाज़ (رضي الله عنهم) और गौसे आज़म (رضي الله عنهم) ने भी यही फरमाया।"
🌺इल्म! बगैर अदब के ज़मीन के किनारों से नहीं निकल सकता है, न मारिफ़त, हक़ीक़त को पा सकता है लेकिन अदब आसमानों से आगे अर्श तक की सैर बगैर इल्म के कर सकता है । इल्म मोहताज़ है अदब का, अदब मोहताज़ नही है इल्म का, अदब की मंजिल हकीकत है, हकीकत की मंजिल औलिया अल्लाह है अहलेबैत (رضي الله عنهم) है जिससे इंशान ज़ाते हक में अपने मक़सूद को पहुचता हैं।
🌺बहुत साफ लफ़्ज़ों में बता दूं, इल्म नूर है, नमाज़ नूर है, इबादत नूर हैं, लेकिन इन सबसे भी कोई मुसलमान ईमान को नही पा सकता है। ईमान खुदा के फज़ल से औलिया के सदके में ही हासिल होगा। ये क़ुरआन खुद फरमाता है। ये ऐसे मौज़ू जिसको समझने के लिए किसी अल्लाह वालों, सल्फ सालेहींन, बुज़ुर्गगाने दींन की निस्बत, शोहबत का होना बहुत जरूरी है जिसमे वक़्त चाहिए।
🌺ख़ानक़ाहों पर तनक़ीद और उनके निज़ामों पर उंगली उठाने या लब कुशाई करने से पहले हमें अपने गिरेबाँ में झाँक देखना चाहिए कि हम किन किन गुनाहों के दलदल में धसे हैं। यही वो ख़ानक़ाहों के औलिया अल्लाह के नेक सालिह बंदे जिनके सदके में हमें फिर से नेकी की तौफ़ीक़ और गुनाहों से माफ़ी मिलती है अपनी जुबानों को खोलने से पहले हज़ार मर्तबा ये सोचना चाहिए कि कल रोज़े क़यामत हमे उनके दामन की और इनकी शिफारिश की जरूरत पड़ेगी। ये खानकाहे ईमान के चश्मे है, जँहा से ईमान को अल्लाह वाले मख़लूक़ को बाट रहे हैं । जो खानकाहों के इंतेजामिया पर ज़ुबान दराज़ी करते हैं उन्हें इन ख़ानक़ाहों का मकाम तब समझ मे आएगा जब किसी अल्लाह वालो से दिल से जुड़ जाएंगे।
🌺औलिया अल्लाह वालों की पल भर की शोहबत भी अफ़ज़ल है एक आलिमे दींन से ये मेरे कौल नहीं है बल्कि अकाबीरीन अल्लाह वालों के कौल है।
*उलमा आलिमे दींन मोहताज़ हैं औलिया के न कि औलिया मोहताज़ है आलिमे दींन के और दुनिया मे भी मोहताज़ है कल क़यामत में भी मोहताज़ रहेंगे*
🌺दर असल हकीकत ये है कि आज उलमा का आलिम का ये बात अक्सर मेरे सरकार पीरों मुर्शिद भी कहा करते थे, की किताबी इल्म ही सब कुछ नहीं है जब तक किसी अल्लाह वालों से ताल्लुक नहीं रखेगा ऐसे आलिम के गर्क होने का अंदेशा होता है। आज उलमा की तालीम में सूफिया, औलिया की तालीम से ज़मीन ओ आसमान का फासला आ चुका है, उलमा की जिंदगी की अब एक अलग ही तसवीर हैं, अलग ही फ़लसफ़ा है।
🌺हर एक अपनी मसनद को बचाने में उलमा को मोहरा बना कर यूज़ कर रहे हैं, तो रूहानियत तो यही मर गयी।
🌺🌺🌺सुल्ताने हिन्द, अतायै रसूल, नायब ऐ रसूल, हज़रत सैय्यद ख्वाजा गरीब नवाज़ मोईनउद्दीन हसन संजरी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैहि फरमाते है:
🏵️तरीक़त, शरीअ़त की जान है, यही इस्लाम की रूह है और यही ताकत भी है। रूहानियत के बगैर इस्लाम एक खाली ढांचा और मुर्दा जिस्म की तरह है। आज हमारी ज़वाल व बर्बादी की असल वजह ये है कि *ज़ाहिरी इल्म तो बहुत है लेकिन रूहानी इल्म से खाली हैं। जिस मज़हब से उसकी रूहानियत निकाल ली जाए, वो अंधेरे, गुमराही और खात्मे के दलदल में धंसता चला जाता है।*
🏵️इन्सान की असल उसकी रूह है, बगैर रूह के इन्सान मिट्टी है। जिस तरह ज़िन्दा रहने के लिए हमें खाने की ज़रुरत होती है, उसी तरह रूह की गि़ज़ा रूहानियत है। क्योंकि रूहानियत से ही उस हक़ की मारफ़त नसीब होती है।
🏵️_*बेशक अल्लाह के वली औलिया मुत्तक़ी ही होते हैं*
🌺इब्न` असाकिर अल-दमिशकी अल-शाफी`-अल-अशारी (الحافظ المورخ علی بن الحسن بن الحسن بن) الشافعی) अपनी किताब *तारीख़े दमिश्क़* में फरमाते है
🌺❣️नबी ऐ पाक मोहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ ने इरशाद फ़रमाया
🏵️"मेरे अहले बैत(رضي الله عنهم) की मिसाल कश्ती ए नूह जैसी है कि जो उसमे सवार हो गया वह निजात पा गया और जिसने रू- गरदानी (आपके कौलो-अमल फैल से बे परवाह होना) की वह ग़र्क़ (बर्बाद) हो गया।"
_
🌺औलिया अल्लाह फ़रमाते है, हक़ीक़त में मुत्ताकि वो लोग हैं जो औलिया अल्लाह वालों की शिफ़त में और उनके अकीदे पर कायम रहकर अल्लाह की ज़िक्र और याद में रहते हैं और ये तक़वा अल्लाह की क़ुर्बियत का ज़रिया है।
_*और तक़वा परहेज़गारी खशीयते इलाही के बग़ैर इल्म समझना नामुमकिन है। ये खशीयते इलाही, औलिया की शोहबत से हासिल होती है किताबों दर्स से नहीं जैसा कि मौला क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि*_
_*अल्लाह से उसके बन्दों में वही डरते हैं जो इल्म वाले हैं*_
*_📚 पारा 22,सूरह फातिर,आयत 28_*
شاداب انور رئیسی ✍️
سلسلہ طریقت :سلسلۂ عالیہ رئیسی خوشحالی💐
सिलसिला-ए-आलिया रईसी ख़ुशहालिया ❣️🥀
Comments
Post a Comment