हिंद में शहीदों के सुल्तान व इमाम, सुल्ताना-उल शोहदा हज़रत सय्यद सालार-ऐ मस्ऊ’द ग़ाज़ी, ग़ाज़ी-ऐ हिंद रदि अल्लाहु ताला अन्हु।🌹

हिंद में शहीदों के सुल्तान व इमाम, सुल्ताना-उल शोहदा हज़रत सय्यद सालार-ऐ मस्ऊ’द ग़ाज़ी, ग़ाज़ी-ऐ हिंद रदि अल्लाहु ताला अन्हु।🌹
हुए पैदा जो ग़ाज़ी मस्ऊ’द
ज़ुल्मत-ए-जेहल  हो गई काफ़ूर

अकबर ‘वारसी’ ये है इल्हाम
लिख विलादत का साल मत्ला-ए’-नूर

रहमत के फूल दीन में इस्लाम के खिले

पैदा हुए जो सय्यिद-ए-सालार नेक-फ़ाम

अकबर तमाम ख़ल्क़ है उनकी तरफ़ रुजूअ’

साल-ए-विलादत उनका लिखो मरजा’-ए-अनाम

हुआ रौशन जो तालि-ए’-मसऊद

जगमगाते हैं दीन और दुनिया

सन विलादत का ये लिखो ‘अकबर’

दीन-ओ-दुनिया के का’बा-ओ-क़िब्ला

सालार ग़ाज़ी दर चमन-ए-ख़ुल्द चूँ रसीद

ग़िलमान-ओ-हूर रा शुदः इमरोज़ रोज़-ए-ई’द

‘अकबर’ ब-फ़िक्र बूद कि हातिफ़ ज़े-ग़ैब गुफ़्त

तारीख़-ए-इंतिक़ाल,वली-ए-जहाँ शहीद

हज़रत-ए-मस्ऊ’द ग़ाज़ी की शहादत का कमाल

जब हुआ मक़्बूल-ए-हक़ आई निदा-ए-ज़ुल-जलाल

है ये ज़िंदा इस से हम राज़ी हैं ‘अकबर’ वारसी

लिख दो , बल अह्याउ इं-’द रब्बिहिम, रिहलत का साल

क़ित्आ’त-ए-तारीख़-ए-विलादत अज़ अकबर ‘वारसी’
ख़्वाजा अकबर वारसी मेरठी ने क़ित्आ’-ए-तारीख़-ए-शहादत लिखा  है।


हिंद में शहीदों के सुल्तान व इमाम, सुल्ताना-उल शोहदा हज़रत सय्यद सालार-ऐ मस्ऊ’द ग़ाज़ी, ग़ाज़ी-ऐ हिंद रदि अल्लाहु ताला अन्हु।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹जिन्हें हज़रत मस्ऊ’द ग़ाज़ी और मियाँ ग़ाज़ी या सालार बाला पीर भी कहते हैं) आपका नसब केवल 12 वास्तो से ही हज़रत अली रादिअल्लाहु ताला अन्हु से जाकर मिल जाता हैं।

अपने चार बुजुर्गों के क़ौल को नकल कर रहा हूं जो आपके बुलन्द मर्तबे और मकाम को ज़ाहिर करता हैं। 🌹🌹🌹🌹

अल्लाहु अक़बर, 🌹 सुब्हान अल्लाह🌹क्या मकाम हैं🌹 क्या शान हैं,🌹 ये अल्लाह और उसका रसूल(صَلَّى ٱللّٰهُ عَلَيْهِ وَآلِه واصحابہ وبارک وَسَلَّمَ), ही सबसे बेहतर जानता है,  ‏‎सुल्तानाउल शोहदा हज़रत सालार-ऐ मसऊद ग़ाज़ी-ऐ हिंद रदि अल्लाहु ताला अन्हु, 

1- इस बारगाह के मुताल्लिक इमाम अहमद रज़ा फ़ाज़ल ऐ बरेलवी आला हज़रत रहमत उल्लाह फरमाते हैं:

"आपकी बारगाहे अक़दस में जब भी कोई जाए तो वो कम से कम एक घंटा जरूर रुके क्योंकि आपकी बारगाह में हर एक घण्टे में ख़िज़्र अलैहिस्सलाम का आना होता हैं।"

2-हज़रत मख़्दूम अशरफ सिमनानी रहमत उल्लाहअलैहि, किछोछा शरीफ़, फरमाते हैं: 

"एक बार मुझे आपकी बारगाह में हाज़िरी कि तौफ़ीक़ नसीब हुई, मैंने आपकी बारगाह में 70 मरतबा ख़िज़्र अलिहस्सलाम को देखा हैं।"

3- मख़्दूम उल मुल्क शैख़ शरफुद्दीन अहमद बिन याहया मन्नेरी रहमत उल्लाह अलैहि, (MAKHDOOM SHEIKH SHARFUDDIN AHMED BIN YAHYA MANERI REHMATULLAH ALAIHI) का आपके बारे में लोगों से बयान करते हैं:
मखदूम उल मुल्क शैख़ हज़रत हज़रत सरफुद्दीन अहमद बिन याह्याया मन्नेरी रहमत उल्लाह अलैहि, बिहार, आपके बारे में इर्शाद फरमाते हुए अपने मुरीद से फ़रमाते है;

"आपसे किसी ने सवाल किया, आपका क्या मकाम हैं हुज़ूर? आपने फ़रमाया जो अपनी जान को केवल अल्लाह और उसके रसूल कि बारगाह में नज़र कर दे क़ुर्बान कर दे उसका मकामो मर्तबा क्या हैं ये बताना बहुत मुश्किल है, जो अल्लाह का हो जाता है अल्लाह भी उसका हो जाता है, आपके मकाम कि ये अदना और बहुत छोटी बात है कि आप जिसे चाहे, जब चाहे, जँहा चाहे, जितना चाहे नवाज दे आप बड़े बुलन्दियों के मालिक हैं।"
4- 1290 ई’स्वी के एक मकतूब में 13वीं सदी के मश्हूर सूफ़ी शाइ’र हज़रत अमीर ख़ुसरो रहमतउल्लाह अलैहि, हज़रत सय्यिद सालार मस्ऊ’द ग़ाज़ी रादिअल्लाहु ताला अन्हु, की दरगाह का ज़िक्र करते हुए नज़र आते हैं। उनका ये ख़त कहता है कि बहराइच शहर के अ’ज़ीम शहीद सालार ग़ाज़ी रादिअल्लाहु ताला का ये मुअ’त्तर-मुअ’त्तर आस्ताना सारे हिन्दुस्तान को संदल-बेज़ करता नज़र आता है।
📗(ए’जाज़-ए-ख़ुसरवी, अमीर ख़ुसरो मतबूआ’ 1895 ई’स्वी-सफ़हा 156)

बेशक़,  🌹 सुब्हान अल्लाह🌹क्या मकाम हैं, क्या शान हैं, ये तो अल्लाह और उसका रसूल (صَلَّى ٱللّٰهُ عَلَيْهِ وَآلِه واصحابہ وبارک وَسَلَّمَ), ही सबसे बेहतर जानता है,  ‏‎सुल्तानाउल शोहदा हज़रत सालार-ऐ मसऊद ग़ाज़ी-ऐ हिंद रदि अल्लाहु ताला अन्हु कि ज़ात के मुताल्लिक़, एक बार आप सब जब भी हुज़ूर करम फ़रमाये तो ज़रूर बहराइच शरीफ में जाकर आपकी ज़ियारत करे। 


तालिबे इल्म
शादाब अनवर_रईसी

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