दुनिया से ज़िक्रे आले मुहम्मद (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) रुक न सका दुनिया ये आरज़ू लिए मरती चली गयी |
हर कौम में फ़ितने आएंगे, फ़ितनो से खलफ़सार पैदा होगा और ये पहले भी आये हैं, आगे भी आते रहेंगे। उम्मत पहले भी कई हिस्सों में, फिरकों में तक़सीम हुई है, आगे भी मुसलमान यूँही कई फिरकों में तक़सीम होती रहेगी हत्ता कि कोई कौम इससे बाकी नहीं रहेगी जिसमे फ़ितने न बरपा हो, खलफ़सार पैदा न हो, इन तमाम हालत को प्यारे पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) ने कुछ यू इरशाद फ़रमाया हैं "इल्म जुबानी ही रह जायेगा, मस्जिदें ख़ूबसूरत होंगी लेकिन हक़ीकी नमाज़ी न होंगे, ज़िना कि कसरत आम हो जाएगी, इल्म का लिल्लाहियत से मक़सद दूर हो जाएगा, अहले दुनिया का बस एक ही मकसद रहेगा दुनिया में माल की तलब, लोगों के माल से हसद, रिस्तेदारों से कताह ताल्लुक, यानी रिस्तों का ख़त्म कर देना, अपनी शानों को बयान करेंगे, बदकार मसनदों पर फ़ाइज़ होने लगेंगे लोग उनसे दींन की बाते सीखने के लिए सवाल करेंगे और वो ज़िहालत को आम करेंगे, लोग दींन में तरह तरह के फितने निकालेंगे, झूट को सच और सच को झूठ बताया जाएगा। और आज आप ये कसरत से ऐसे हालातों को अपने आस पास देख सकते हैं।
हम अहलेसुन्नत वल ज़मात से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन एक वक्त आएगा जँहा इसमें फ़ितने कायम होने लगेंगे और अगर आप मौज़ूदा दौर में ग़ौरो फिक्र करेंगे तो आप पाएंगे कि आज ऐलानिया अहले सुन्नत वल ज़मात के रहबर और इल्म से जौक रखने वाले लोग लोग एक दूसरे को बुरा-भला कहते हैं, सुनते हैं। जिसमे ऐसे लफ़्ज़ों का भी एक दूसरे के लिए इस्तेमाल करते हैं, जो एक दूसरे को मज़्हबे इस्लाम से ही खारिज़ कर देते हैं। में यही कहूँगा कि इल्म जब बगैर रूहानियत के, बगैर तरबियत के हासिल कर लिया जाता है तो वो आगे चलकर, ख़ुद के लिए और लोगों के लिए दुस्वार बन जाता है, और फिर यही इंशान के बद-अखलाकि से ज़ाहिर होने लगता हैं और कुछ वक्त के बाद जुबा से बाहर आ जाता हैं, हमें जुबा दराज़ी किसी मुसलमान के लिए नहीं करना चाहिए। ऐसा नहीं है कि हमारे अकाबिरींन उलमा-ऐ दींन, सल्फ सुआलेहींन ने हर फ़ितने से निपटने के लिए न बताया हो? सब कुछ मौज़ूद है दींन में और उसे बताया भी हैं, समझाया भी हैं हमारे बुजुर्गों ने।
ये और बात है कि आज के नफ़सा नफसी के दौर में लोग ग़ुरूर, तकब्बुर और हसद में, अपनी अना से या अपने मफाद से उन बातों को तस्लीम न करे।
बात ईमान कि, तो ईमान तो उन्ही का सलामत रह सकेगा जो अपने सल्फ सुआलेहींन के दामन से वा-बस्ता रहेंगे और उन्हीं कि मोहब्बत में दुनिया से रुख़सत होंगे। सल्फ सुआलेहींन कि नसीहत है कि अपने मुसलमानों की बेइज़्जती करना, बड़ा गुनाह हैं (जब तक हुक़्म या फिर साबित न हो जाये, मुसलमान को ऐसे लफ्ज़ कहने से परहेज़ करना चाहिए जो एक दूसरे को इस्लाम से खारिज करते हो)।
किसी को नहीं पता इस उम्मत में किसका ख़ात्मा ईमान पर होगा या बदी पर, लेकिन हां हमारे अकाबिरींन ने हर हाल में अपने *सल्फ से बा-बस्ता रहने और बद अख़लाक़ी से हर हाल में दूर रहने की नाशिहत फरमाई है, उनके अक़वाल और उनकी जिंदगी के फैल हमारी निज़ात का जरिया है, बस ये फ़ज़्ल रब्बी हैं और औलिया अल्लाह का सदक़ा होगा, जिसको ये तौफीक़ हासिल हो जाए।
याद रखे: इस उम्मत में खाली अक़ीदे का ही मसला नहीं है, बद अख़लाक़ी भी दींन में बहुत बड़ा मसला हैं, और ये बद अख़लाक़ी ईमान को बर्बाद ही नहीं करती बल्कि ईमान को छीन लेती हैं।
दुनिया से ज़िक्रे आले मुहम्मद (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) रुक न सका दुनिया ये आरज़ू लिए मरती चली गयी।
तालिबे इल्म
शादाब अनवर_रईसी
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