सालाना उर्स हज़रत ख़्वाजा उस्मान हारूनी चिश्ती (رضی اللہ عنہ) मुबारक हो, 🤲❣️🌷🌺🌷🌺❤️❤️


सालाना उर्स हज़रत ख़्वाजा  उस्मान  हारूनी  चिश्ती (رضی اللہ عنہ)  मुबारक हो, ईद ए चिशतीया    मई  2022🌷🌺🤲❣️🌷🌺🌷🌺❤️❤️❣️

🌷🌷पीरों के पीर   दस्तगीर 🌷।   अशरफ़ उल औलिया।🌷  ताजदार ए औलिया।🌷   गौंस ए ज़माना    🌷 इमाम उल औलिया 🌷  सालार ए चिशतीया।  🌷 अंजुमन  बहार ए चिशत    कुतबीयत ए कुबरा पर फाइज़     यकता ए ज़माना। 🌷   शौख़ उल इस्लाम वल मुस्लमीन। 🌷  वारिस  ए उलूम  हज़रत अली  मौला ए काइनात।  🌷    सालार ए चिशतीया। 🌷   आफताब ए  विलायत 🌷     अशरफ़ उल अक़ताब। 🌷  ख़्वाजा ए खवाजगान।🌷   हज़रत ख़्वाजा  उस्मान  हारूनी  चिश्ती  (رضی اللہ عنہ)🌷 मज़ार ए अकदस  जन्नत उल  मुअल्ला     मक्का शरीफ   में है 🌷  आपका जशन ए‌ सालाना उर्स मुबारक आलमें  इस्लाम व चिश्ती जगत को मुबारक हो🌷
🌷🌷हज़रत ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी(رضی اللہ عنہ) ने 6 तारीख़ शव्वालुल-मुकर्रम 617 हिज्री1220 ई’स्वी को मक्का मुकर्रमा में 91 साल की उ’म्र में विसाल फ़रमाया । गंजीना-ए-सर्मदी में आपकी तारीख़-ए-विसाल ये लिखी है।
🌷रफ़्त अज़ दुनिया चू दर ख़ुल्द-ए-बरीं
शैख़  उ’स्मां मुक़्तदा-ए-औलिया
साल-ए-वस्लश क़ुतुब-ए-आँ आमद अ’याँ
जल्वा-गर शुद नीज़ ताजुल-अस्फ़िया
🌷मज़ार-ए-मुक़द्दस मक्का मुअ’ज़्ज़मा में माबैन-ए-का’बा शरीफ़ और जन्नतुल-मुअ’ल्ला है। पहले मज़ार पर इमारत और गुंबद भी बना हुआ था । सऊ’द ने उसे शहीद करा दिया। ये जगह अब महलुश्शरीफ़ुल-हुसैन के अंदर वाक़े’ है जिसमें एक लकड़ी का चबूतरा बना हुआ है। 
🌷जिसने भी आप के मज़ार शरीफ़ को मिटाने की कोशिश की वो ना-मुराद हुआ| शरीफ़ हुसैन का निस्फ़ महल इसी वजह से जल चुका है।
🌷हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती (رضی اللہ عنہ)  की विलादत बमुताबिक 536 हिजरी(1141 ईस्वी) ईरान के शहर सिस्तान में हुई थी,आपका सिलसिला-ए-नशब वालिद के जानिब से 12वें पीढ़ी पर,हज़रत इमाम हुसैन रदी अल्लाहो ता आला अन्हो वहीं वालिदा के जानिब से 10वें पीढ़ी पर हज़रत इमाम हसन रदी अल्लाहो ता आला अन्हो से मिलता है,आपके पीर-ओ-मुर्शिद हज़रत ख्वाजा उस्मान हारूनी(رضی اللہ عنہ)  थे जिनके पास आप लगभग 20 साल तक रहे,आपको ख्वाजा ग़रीब नवाज और सुल्तान उल हिंद(رضی اللہ عنہ) के नाम से भी जाना जाता है,आपने ही हिन्दुस्तान में चिश्ती सिलसिले की बुनियाद को रखा था और हज़रत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रह्मातुल्लाह अलैह को अपना खलीफा क़रार दिया था|
🌷🌷नवासा ऐ रसूलुल्लाहﷺ
शहज़ाद ऐ मोला अली अल मुर्तज़ा
लख्ते जिगर सय्यदा फातिमा ज़हरा
आले हसनेन करीमेन 
गुले बागे पंजतन
अताए रसूलﷺ ऐ आज़म
नवाज़िश ऐ ग़ौश ऐ आज़म
जानशीन ऐ ख्वाजा उस्मान ऐ हारूनी
गुले गुलजार चिस्तिया
क़ुतुब उल मशाइख ऐ बहरो ओ बर
हबीबुल्लाह
सुल्तान उल हिन्द
ताजवर ऐ ईमाम उल हिन्द
ताजदार ऐ हिन्दल वली
नायब ऐ रसूलﷺ फिल हिन्द
अल क़ुतुब
अल मखदूम
अल कलन्दर
अल मुजाहिद
अल मशाइख
अल मुजद्दीद
अल मुहक़्क़ीक़
अल मुफ़स्सिर
अल मुहद्दिस
🌷अल मारूफ ख्वाजा गरीब नवाज सय्यद शाह मोइनुद्दीन हसन चिस्ती संजरी अजमेरी(رضی اللہ عنہ) के पीरों मुर्शिद का  उर्स मुबारक हो।
या संजरी करम भरम आमीन
🌷मुर्शिद-ए-कामिल से बैअ’त  के बारे में हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्तीअजमेरी(رضی اللہ عنہ)  ने अपनी किताब “अनीसुल-अर्वाह” में ख़ुद तहरीर फ़रमाया है। उनकी ज़बान-ए-हक़ तर्जुमान से सुनिए।

🌷“ ये दुआ’ गो मुई’नुद्दीन संजरी ब-मक़ाम-ए-बग़दाद शरीफ़ ख़्वाजा उ’स्मान जुनैद की मस्जिद में अपने मुर्शिद-ए-पाक हज़रत ख़्वाजा हारूनी क़ुद्दिसा-सिर्रहु की दौलत-ए-पा-बोसी से मुशर्रफ़ हुआ। उस वक़्त रू-ए-ज़मीन से मशाइख़-ए-किबरिया हाज़िर थे। जब इस दरवेश ने सर-ए-नियाज़ ज़मीन पर रखा तो पीर-ओ-मुर्शिद ने इर्शाद फ़रमाया “ दो रक्अ’त नमाज़ अदा कर” मैं ने नमाज़ अदा की तो फ़रमायाः “क़िब्ला रू बैठ”। मैं बैठ गया। फिर हुक्म दिया “ सूरा-ए-बक़्रा पढ़”। मैंने पढ़ी। फ़रमान हुआ। इक्कीस बार दुरूद शरीफ़ पढ़”। मैने पढ़ा। फिर आप खड़े हो गए और मेरा हाथ पकड़ कर आसमान की तरफ़ मुँह किया और फ़रमायाः “आ, ताकि मैं तुझे ख़ुदा तक पहुँचा दूँ”।

🌷बा’द अज़ाँ क़ैंची लेकर दुआ’-गो  के सर पर चलाई और गलीम-ए-ख़ास अ’ता फ़रमाई। फिर इर्शाद हुआ। “बैठ जा”। मैं बैठ गया तो फ़रमाया”। हमारे ख़ानवादे में एक शबाना-रोज़ के मुजाहिदे का मा’मूल है। तू आज रात और दिन मश्ग़ूल रह।” ये दरवेश ब-मोजिब-ए-फ़रमान-ए-आ’ली मश्ग़ूल रहा। दूसरे दिन जब हाज़िर-ए-ख़िदमत हुआ तो इर्शाद फ़रमाया। “आसमान की तरफ़ देख”। मैने देखा। दर्याफ़्त फ़रमाया कहाँ तक देखा है?” अ’र्ज़ किया ।अ’र्श-ए-अ’ज़ीम तक। फिर फ़रमाया “ज़मीन की तरफ़ देख”। मैंने देखा।इस्तिफ़्सार फ़रमाया। कहाँ तक देखा है? अ’र्ज़ किया।तह्तुस्सुरा तक। फ़रमाया। अब हज़ार बार सूरा-ए-इख़्लास पढ़”। मैंने पढ़ा । फ़रामाया अब आसमान की तरफ़ देख”। मैंने देखा। पूछा”। अब कहाँ तक देखा है?” अ’र्ज़ किया। हिजाब-ए-अ’ज़्मत तक। फ़रमायाः “आँखें बंद कर” मैंने बंद कर लीं। फ़रमाया “खोल”। मैंने खोल दीं। फिर मुझे अपनी उँगलियाँ दिखा कर सावाल किया “ क्या देखता है?” मैंने अ’र्ज़ किया। अठारह हज़ार आ’लम।

🌷बा’द अज़ाँ सामने पड़ी हुई एक ईंट उठाने का हुक्म दिया। मैने ईंट उठाई। तो उसके नीचे अशर्फ़ियों का ढ़ेर था। फ़रमाया उसे लेजा और फ़ुक़रा में तक़्सीम कर दे। मैंने हुक्म की ता’मील की। वापस लौट कर आया तो इर्शाद हुआ कि “चंद रोज़ हमारी सोहबत में गुज़ार” अ’र्ज़ किया फ़रमान-ए-आ’ली  सर आँखों पर”। 

🌺🌺🌷(अनीसुल-अर्वाह)

🌷प्यारे भाई क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी -ख्व़ाजा साहब  रेहमतुल्लाह अलैही के ख़ुतूत अपने मुरीद-ए-ख़ास के नाम - मक्तूब -3

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

अल्लाहुस्समद, मेरे भाई क़ुतुबुद्दीन, अल्लाह पाक आपके मर्तबे बुलंद रखे।

इस गुनहगार फ़क़ीर मुईनुद्दीन संजरी की तरफ़ से ख़ुशी-ओ-ख़ुर्रमी-आमेज़ उन्स-ओ-मुहब्बत भरा सलाम हो। मक़्सूद ये कि ता-दम-ए-तहरीर सेहत-ए-ज़ाहिरी के सबब मशकूर हूँ। अल्लाह पाक आपको सेहत-ए-दारैन अ’ता फ़रमाए।

🌷भाई ! मेरे शैख़ ख़्वाजा उस्मान हारूनी फ़रमाते हैं सिवाए अहल-ए-मा’रिफ़त के और किसी को इ’श्क़ के रुमूज़ात (भेदों) से वाक़िफ़ नहीं करना चाहिए। ख़्वाजा शैख़ सा’दी ने उनसे से पूछा कि अहल-ए-मा’रिफ़त को कैसे पहचान सकते हैं तो ख़्वाजा साहिब ने फ़रमाया कि अहल-ए-मा’रिफ़त की अ’लामत तर्क है जिसमें तर्क होगी, यक़ीन जानो कि वो अहल-ए-मा’रिफ़त है और उसे ख़ुदा-शनासी हासिल है और जिसमें तर्क नहीं, उसमें मा’रिफ़त की बू भी नहीं। ये अच्छी तरह यक़ीन कर लो कि कलिमा-ए-शहादत और नफ़ी इस्बात हक़ तआ’ला की मा’रिफ़त है। माल-ओ-मर्तबा ने बहुत लोगों को सीधी राह से गुमराह किया और कर रहे हैं। ये बन्दों के ख़ुदा बन रहे हैं बहुत लोग जाह-ओ-माल की परस्तिश करते हैं।

🌷जिसने माल-ओ-जाह की मोहब्बत को दिल से निकाल दिया, उसने गोया पूरी नफ़ी कर दी और जिसे हक़ तआ’ला की मा’रिफ़त हासिल हो गई उसने पूरा इस्बात कर लिया और ये बात ला-इलाहा इल्लल्लाह के कहने और उस पर अ’मल करने से हासिल होती है ।
वस्सलाम

🌷बारगाह-ए-इलाही में हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु के लिए शैख़-ए-मुकर्रम हज़रत उ’स्मान हारूनी मक्की चिश्ती रज़ी अल्लाहु अ’न्हु की दुआ’एं:

🌷शैख़ का दर्जा-ए-जांनशीन रसूल-ओ-नाएब-ए-रसूल का है जैसे कि शैख़ अ’ब्दुलहक़ मुहद्दिस देहलवी फ़रमाते हैं। ‘जान लें कि शैख़ से मदद माँगना हुज़ूर सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम से मदद माँगना है क्योंकि ये उनके नाएब और जांनशीन हैं और इस अ’क़ीदे को पूरे यक़ीन के साथ अपने पल्ले बांध लें। 

(मज्मुआ’तुल-मकातीबुर्रसाएल 350)

🌷शैख़ का दर्जा रुहानी बाप का है।शैख़ शुयूख़-ए-आ’लम हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु अपने ख़िताबात में मुरिदीन से फ़रमाते थे “ऐ फ़र्ज़न्दों’’ रुहानी बेटों !
(फ़ुतूहुल-ग़ैब उर्दू तर्जुमा, फ़ुतूहात-ए-रब्बानी उर्दू तर्जुमा वग़ैरा)

🌷शैख़ अपने मुरीदों पर बहुत हक़ रखता है और बहुत मोहब्बत-ओ-नवाज़िशात भी करता है। हज़रत शैख़ उ’स्मान हारूनी रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने जो फ़ैज़ान-ए-मा’रिफ़त  हुज़ूर ग़रीब नवाज़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु पर किया उसकी मिसाल दुनिया देने से क़ासिर है। सियरुल-आ’रिफ़ीन में हामिद बिन फ़ज़लुल्लाह जमाली लिखते हैं ‘हज़रत उ’स्मान हारूनी ने बारहा अपनी ज़बान-ए-मुबारक से ज़िक्र किया कि “हमारा मुई’नुद्दीन महबूबुल्लाह है और हम उसकी मुरीदी पर फ़ख़्र करते हैं’। 

(सियरुल-आ’रिफ़ीन,4 (14)

🌷🌷" आप का’बा का ग़िलाफ़ पकड़ कर दुआ’ फ़रमाते या अल्लाह मुई’नुद्दीन को मुझ जैसा कर दे। एक मक़ाम पर फ़रमाते हैं मुई’नुद्दीन इलाही मुई’नुद्दीन को अपना जैसा कर दे। रब्बुल-आ’लमीन मेरी क़ब्र को मिटा दे मगर मुई’नुद्दीन की क़ब्र को ता-क़ियाम-ए-क़ियामत आबाद रखना। मुई’नुद्दीन से वो हो जो ख़ुदा से होता है."🤲🤲🤲

🌷🌷Letter No. 3- On Renouncement

In the name of God, the Compassionate, the Merciful.
“One who knows the significances of ‘God is Eternal’, is initiated into the splendors of ‘He begetteth not, nor is begotten’, my brother, Khwaja Qutubuddin of Delhi, may God raise you to higher eminence, accept from Muinuddin Sanjari, a sinful fakir, salaams full of love and happiness.
“Up till the penning of these lines, I am in the enjoyment of good health for which I am grateful to God, and pray that you may have the health of both the worlds.”
“My dear brother,

Sheikh Usman Harooni says, “No one but those possessing knowledge (of God) should be let into the mysteries of love (of God).”

When Khwaja Sheikh Saadi asked him how to know those who possessed knowledge (of God), he replied, “Their sign is renunciation of the world. He, who has attained this stage, takes him for one knowing God. He, who does not attain it, is completely devoid of His knowledge.

Believe it that Kalimah-e-Shahadat (the two members of Mohammedan confession of faith, i.e. Laa-ilaha-illallah (there is no God but Allah) and Mohammed-ur-Rasullallah (Mohammed is the apostle of God) which embodies both a denial and an affirmation, is the means of acquiring divine knowledge. Power and pelf are two Mumbo-Jumbos. They have led, and are leading, many astray from the straight path. They are being worshiped by the whole world. Many are at devotion at temples. He who drove away from their love from his heart has repudiated them. He who has acquired knowledge of God has attained the stage of faith in the existence of God. This is achieved by reciting Laa-ilaha-illallah, and acting upto it. Therefore he who does not recite Kalimah-e-Shahadat does not know God
– And Salaams.”

या मेरे अल्लाह जुमला अंबिया के वास्ते,
 हाजतें बरला मेरी कुल औलिया के वास्ते🤲🤲🌹🤲💐

✍️शादाब अनवर_रईसी ख़ुशहाली
सिलसिला ऐ आलिया रईसी ख़ुशहाली

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