HAZRAT SYEDNA SHAH AMEER ABUL ULA رحمة الله علیه (Hindi)
HAZRAT SYEDNA SHAH AMEER ABUL ULA رحمة الله علیه (Hindi)
सूफ़िया-ए-किराम ने मख़्लूक़-ए-ख़ुदा के सामने अपने क़ौल की बजाए अपनी शख़्सियत और किरदार को पेश किया, उन्होंने इन्सानों की नस्ल, तबक़ाती और मज़हबी तफ़रीक़ को देखे बग़ैर उनसे शफ़क़त-ओ-मुहब्बत का मुआमला रखा, जमाअत-ए-सूफ़िया के मुक़तदिर मशाएख़ में ऐसी भी हस्तियाँ हुईं जो अपने ला-फ़ानी कारनामों की वजह से मुमताज़-ओ-अदील हुईं जैसे ग्यारहवीं सदी हिज्री के मक़बूल-ए-ज़माना बुज़ुर्ग हज़रत महबूब सय्यदना अमीर अबुल-उला जिनकी वलाएत-ओ-करामात और ख़वारिक़-ओ-आदात से ज़माना रौशन है.
हज़रत सय्यद अमीर अबुल-उलाرحمة الله علیه की विलादत 990 हि. मुताबिक़ 1592 ई. में क़स्बा नरेला (दिल्ली मैं हुई, इस्म-ए-गिरामी अमीर अबुल-उला, अमीर आपका मौरूसी लक़ब है और तख़ल्लुस इंसान है, आप मीर-साहेब, सय्यदना-सरकार, महबूब-ए-जल्ल-ओ-इला और सरताज-ए-आगरा वग़ैरा के ख़िताब से मशहूर हुए, आपके वालिद का नाम अमीर अबुल-वफ़ा(رحمة الله علیه) और वालिदा बेगम बीबी आरिफ़ा अरहिमा थीं, इनके अलावा आपकी एक हमशीरा भी थीं, वालिद की तरफ़ से आप हज़रत-ए-सय्यद अबदुल्लाह बा-हर-ख़लफ़ इमाम ज़ैनुल-आबिदीन (رضی اللہ تعالٰی عنہ), की औलाद से हैं और वालिदा की जानिब से हज़रत अबुबकर सिद्दीक़ (رضی اللہ تعالٰی عنہ), की औलाद में से हैं। (नजात क़ासिम, सफ़हा 8)
अमीर अबुल-उला इब्न-ए-अमीर अबुल-वफ़ा इब्न-ए-अमीर अब्दुस्सलाम इब्न-ए-अमीर अब्दुलमलिक इब्न-ए-अमीर अब्दुलबासित इब्न-ए-अमीर तक़ीउद्दीन किरमानी इब्न-ए-अमीर शहाबुद्दीन महमूद इब्न-ए-अमीर इमादुद्दीन अमर-ए-हाज इब्न-ए-अमीर अली इब्न-ए-मीर निज़ामुद्दीन इब्न-ए-अमीर अशरफ़ इब्न-ए-अम अइज़्ज़ुद्दीन इब्न-ए-अमीर शरफ़ुद्दीन इब्न-ए-अमीर मुज्तबा इब्न-ए-अमीर गिलानी इब्न-ए-अमीर बादशाह इब्न-ए-अमीर हसन इब्न-ए-अमीर हसैन इब्न-ए-अमीर मोहम्मद इब्न-ए-अमीर अबदुल्लाह इब्न-ए-अमीर मोहम्मद इब्न-ए-अमीर अली इब्न-ए-अमीर अबदुल्लाह इब्न-ए-अमीर हुसैन इब्न-ए-अमीर इस्माईल इब्न-ए-अमीर मोहम्मद इब्न-ए-अमीर अबदुल्लाह बाहिर इब्न-ए-इमाम ज़ैनुल-आबेदीन इमाम हुसैन इब्न-ए-अमीर-ऊल-मोमनीन अली इब्न-ए-अबी तालिब।
(हुज्जत-उल-आ’रेफ़ीन, सफ़हा, 57)
अमीर अबुल-उला बिन बी-बी आरिफ़ा बिंत-ए-ख़्वाजा मोहम्मद फ़ैज़ इब्न-ए-ख़्वाजा अबुलफ़ैज़ इब्न-ए-ख़्वाजा अब्दुल्लाह ख़्वाजका इब्न-ए-ख़्वाजा उबैदुल्लाह अहरार इब्न-ए-ख़्वाजा महमूद इब्न-ए-ख़्वाजा शहाबुद्दीन शाशी (चार पुश्त बाद) ख़्वाजा मोहम्मद अल-नामी बग़दादी से होते हुए हज़रत अबूबकर सिद्दीक़ से जा मिलता है।
(सिलसिलतुल आ’रेफ़ीन व तज़्किरतुल सिद्दीक़ीन)
हज़रत सय्यदना अमीर अबुल-उला के आबा-ओ-अजदाद किसी ज़माने में किरमान (ईरान) में सुकूनत पज़ीर थे, हज़रत शाह मोहम्मद क़ासिम अबुल-उलई दानापुरी (मुतवफ़्फ़ी 1281 हि.)लिखते हैं
”हज़रत सय्यद अमीर इमादुद्दीन अमर-ए-जाज का मज़ार-शरीफ़ उनका बिच क़र्या बिस्म मुज़ाफ़ात-ए-दारु-अमान किरमान (ईरान) के है तमाम आलम में रोशन थे” (नजात-ए-क़ासिम, सफ़हा, 8)
हज़रत अमीर इमादुद्दीन अमर-ए-जाज के नबीरा हज़रत अमीर तक़ीउद्दीन किरमानी जो मिर्ज़ा शाहरुख़ (बादशाह) के अहद में किरमान (ईरान) से हिज्रत करके समरक़ंद (उज़बेकिस्तान) तशरीफ़ लाए, लिखते हैं:
”सोलह बरस की उम्र में आप (अमीर तक़ीउद्दीन) अपने वतन मालूफ़-ए-किर्मान (ईरान) से हिज्रत करके वलाएत मावराउन्नहर को तशरीफ़ ले गए और मौलाना क़ुत्बुद्दीन राज़ी से तहसील-ए-उलूम-ए-ज़ाहिरी हासिल करके थोड़े दिनों में आलिम-उद-दहर और फ़ाज़िल-उल-अस्र हो गए, चुनांचे सिलसिल-ए-इरादत आपका ब-चंद-वास्ता शेख़-उल-शुयूख़ा हज़रत शहाबुद्दीन सुह्रवर्दी (رضی اللہ تعالٰی عنہ), मिलता है कहते हैं कि इसरार से मर्ज़ाशाहरुख़ बादशाह के शहर समरक़ंद में आपने तवत्तुन इख़तियार किया वहीं इंतिक़ाल फ़रमाया” (नजात-ए-क़ासिम, सफ़हा 11)
वाज़ेह हो कि ख़्वाजा उबैदुल्लाह अहरार(رحمة الله علیه) और अमीर तक़ीउद्दीन किरमानी(رحمة الله علیه) दोनों हम-अस्र और दोस्त हैं, दोनों बुज़ुर्ग का मज़ार भी एक ही जगह पर समरक़ंद में वाक़ा है, रिवायत है कि अमीर तक़ीउद्दीन किरमानी के जनाज़ा को ख़्वाजा अबैदुल्लाह अहरार(رحمة الله علیه) अपने दोश पर मज़ार तक ले गए, उस वक़्त दोनों ख़ानवादा में बड़ी क़ुरबत हो चुकी थी। (ईज़न)
मुअल्लिफ़-ए-‘नजात-ए-क़ासिम’ लिखते हैं:
”कई पुश्तों से बराबर बुज़ुरगवार हज़रत महबूब जल्ल-ओ-इला के नवासे ख़्वाजगान अहरारी के थे.” (नजात-ए-क़ासिम, सफ़हा-13)
यानी हज़रत सय्यदना अबुल-उला ख़्वाजा मोहम्मद फ़ैज़ुल-मा’रूफ़ फ़ैज़ी इब्न-ए-ख़्वाजा अबुल-फ़ैज़(رحمة الله علیه) के नवासा हुए, आपके वालिद अमीर अबुल-वफ़ा, ख़्वाजा अबुलफ़ैज़ इब्न-ए-ख़्वाजा अबदुल्लाह उर्फ़ ख़्वाजका (मुतवफ़्फ़ी 908 हि.)(رحمة الله علیه) के नवासा हुए और हमारे हज़रत के जद्द अमीर अबदूस्सलाम(رحمة الله علیه), ख़्वाजा अबदुल्लाह उर्फ़ ख़्वाजका इब्न-ए-ख़्वाजा उबैदुल्लाह अहरार(رحمة الله علیه) (मुतवफ़्फ़ी 895 हि.) के नवासा हुए ,और इस तरह अमीर अबदूस्सलाम(رحمة الله علیه) के वालिद-ए-माजिद हज़रत अमीर अब्दुलमलिक(رحمة الله علیه), ख़्वाजा अबदुल्लाह(رحمة الله علیه) उर्फ़ ख़्वाजका के ख़्वेश-ए-अज़ीज़ हुए।
(अन्फ़ासु-आ’रेफ़ीन, सफ़हा-21)
हमारे हज़रत का कई पुश्तों से नानेहाली ख़ानदान शाह बेग ख़ान के क़ब्ज़े के बाद मुश्किलात का शिकार होता चला गया,मा ह-ए-मुहर्रम 906 हि. मुवफ़िक़ माह-ए-अगस्त 1500 ई. में ख़्वाजा उबैदुल्लाह अहरार(رحمة الله علیه) के साहबज़ादे ख़्वाजा यहिया अहरारी(رحمة الله علیه) (मुतवफ़्फ़ी 906 हि. और उनके दो बेटे (ज़करीया अहरारी और अबदुलबाक़ी अहरारी)(رحمة الله علیه) अपने वालिद-ए-मुहतरम के हमराह शहीद हुए (सिलसिलतुल आ’रेफ़ीन व तज़्किरतुल सिद्दीक़ीन)
ख़्वाजा हाशिम किश्मी (मुतवफ़्फ़ी 1054 हि.) रक़मतराज़ हैं:
”अब उनका मूलिद-ओ-मस्कन समरक़ंद कोई पुर-अमन जगह न रहा था, मजबूरन ख़्वाजा अहरार के पस मान्दगान को काशग़र (ईरान) और हिन्दुस्तान का रुख़ करना पड़ा”
(निस्मातुल-कुदुस मिन हदाइक़-उल-उन्स, मक़सद-ए-दोम)
हज़रत अमीर तक़ीउद्दीन किरमानी के साहबज़ादे अमीर अब्दुलबासित समरक़ंद (उज़बेकिस्तान) के रहने वाले थे, समरक़ंद में आपके ख़ानदान के अफ़राद दौलत-ओ-सरवत और जाह-ओ-मन के अलावा शुजाअत-ओ-बहादुरी और ज़ोहद-ओ-तक़्वा के लिए मशहूर थे, उनके दो फ़र्जन्द थे अमीर अब्दुल-मलिक और अमीर ज़ैनुल-आबेदीन, अमीर अब्दुलमलिक के साहबज़ादे यानी हमारे हज़रत सय्यदना अब्दुलउला के जद्द-ए-अमीर अबदूस्सलाम समरक़ंद से सुकूनत तर्क करके जलालुद्दीन अकबर (मुतवफ़्फ़ी 1014 हि. 1605 ए) के अहद-ए-हुकूमत 963 हि. 1555 ई. ता 1014 हि. 1605 ई.)में हिन्दुस्तान अपने अहल-ओ-अयाल के साथ तशरीफ़ लाए, लाहौर होते हुए क़स्बा नरेला जो दिल्ली में वाक़ा है पहुँच कर वहाँ क़याम फ़रमाया (इसी असना में हज़रत अबुल-उला(رحمة الله علیه) की पैदाइश हुई) कुछ अरसा वहाँ क़याम करके मा-अहल-ओ-अयाल फ़तहपुर सीकरी पहुँचे वहाँ शहनशाह अकबर से मुलाक़ात हुई, अकबर की दरख़्वास्त पर आपने यहाँ क़याम करना मंज़ूर किया।
(नजात-ए-क़ासिम, सफ़हा-14)
अभी आप कम-सिन ही थे कि वालिद-ए-माजिद को दर्द क़ोलंज की शिकायत हुई और इसी मर्ज़ में उन्होंने फ़तहपुर सीकरी में वफ़ात पाई, नाश को दिल्ली ले जाया गया और वहीं मदरसा लाल-दरवाज़ा के क़रीब सुपर्द-ए-ख़ाक किया गया, लेकिन अब कोई वाक़िफ़-कार बाक़ी न रहा कि निशान-ए-मज़ार बता सके, ब-क़ौल नजात-ए-क़ासिम:
”चुनांचे कातिब (क़ासिम) ने बहुत तजस्सुस किया मगर ज़ियारत (मज़ार) नसीब न हुई”
(सफ़हा-15)
वालिद-ए-मोहतरम से महरूम होने के बाद आपके जद्द अमीर अबदूस्सलाम(رحمة الله علیه) आपकी हर तरह से दिल-जूई करते और हर बात का ख़्याल रखते आपके जद्द हरीमैन शरीफ़ैन ज़ाद-अल्लाह तशरीफ़न व ता’ज़ीमन की ज़ियारत के लिए रवाना हुए तो फिर हिन्दुस्तान वापस तशरीफ़ न ला सके और वहीं उन्होंने वफ़ात पाई मज़ार जन्नत-ल-बक़ी’अ में है, सफ़र-ए-हज से क़ब्ल आपके दादा ने आपको नाना ख़्वाजा फ़ैज़ुल-मा’रूफ़ ब-फ़ैज़ी ख़लफ़-ए-ख़्वाजा अबुलफ़ैज़(رحمة الله علیه) के सुप्रद फ़रमाया था अभी आप अच्छी तरह सिन्न-ए-शऊर को पहुँचे भी न थे कि नाना ने एक मुहिम में जाम-ए-शहादत नोश किया इस तरीक़े से हमारे हज़रत का ख़ानदान बचपन में कई तरह के सदमे का शिकार होता चला गया लेकिन कहते हैं कि अल्लाह उन्हीं को मुक़ाम-ए-वलाएत से नवाज़ता है जिन्हें सब्र-ओ-तहम्मुल के रास्ते से गुज़ारता है।
(नजात-ए-क़ासिम, सफ़हा-8)
आपके नाना ख़्वाजा फ़ैज़ुल-मा’रूफ़ ख़्वाजा फ़ैज़ी बर्दवान (رحمة الله علیه)(बंगाल) मैं हाकिम मान-सिंह की तरफ़ से निज़ामत के उहदे पर फ़ाएज़ थे, दादा (अमीर अबदूस्सलाम(رحمة الله علیه)) की रहलत के बाद ख़्वाजा फ़ैज़ी आपको अपने हमराह बर्दवान ले गए आपकी तालीम-ओ-तर्बीयत नाना की निगरानी में हुई, आपके नाना न सिर्फ एक मुग़ल उहदे-दार थे बल्कि अपने बलन्द मर्तबा आबा-ओ-अजदाद के उलूम-ओ-फ़ुनून से भी आरास्ता व पैरास्ता थे उन्हीं की सोहबत में हज़रत सय्यदना अबुल-उला(رحمة الله علیه) तेज़ी के साथ कमाल-ए-मार्फ़त तक पहुँचे
(हुज्जत-उल-आ’रेफ़ीन, सफ़हा-59)
ब-क़ौल नजात-ए-क़ासिम:
”थोड़े ही दिनों में जुम्ला उलूम में वहीद-उल-अस्र और सब फ़ुनून में फ़रीद-उद-दहर हो गए”
आप अपने नाना के ज़रीया फ़न्न-ए-सिपहगरी और तीर-अंदाज़ी में बे-मिसाल साबित हुए, मुआमला-फहमी, रास्त-गोई, ख़ुश-तदबीरी, इस्तिक़लाल, शुजाअत और जवाँ-मर्दी का बहुत जल्द आला नमूना बन गए. जब दिल बिलकुल अल्लाह की जानिब मुतवज्जा हुआ तो बर्दवान (बंगाल) से कहीं दूर जाकर इबादत में मशग़ूल होना चाहा, ब-सिलसिल-ए-मुलाज़मत बर्दवान में मुक़ीम थे कि शहंशाह-ए-वक़्त अकबर माह अक्तूबर 1014 हि. 1605 ई. में कूच कर गया, नूरुद्दीन जहाँगीर (मुतवफ़्फ़ी 1037 हि. 1627 ई.) तख्त-ए-शाही पर जब रौनक-अफ़रोज़ हुआ तो इनान-ए-हुकूमत 1014 हि. 1605 ई.) में लेने के बाद एक फ़रमान जारी किया कि ”जुम्ला सूबेदार, मंसबदार, नाज़िम और उमरा-ए-आगरा शाही दरबार में हाज़िर हों ताकि उनकी ज़हानत, क़ाबिलीयत, वज़ाहत और शख़्सियत को परखा जाए आप तो ख़ुद ही मुलाज़मत से बे-ज़ार थे और इस राह को तर्क करके दूसरी राह इख़्तियार करना चाहते थे जब ये शाही फ़रमान बर्दवान पहुँचा तो इसको ताईद ग़ैबी समझ कर सफ़र पर निकल पड़े, बर्दवान से शहर-ए-अज़ीमाबाद (पटना) होते हुए मनेर शरीफ़ पहुँचे किसी ने ये इत्तिला दी कि यहाँ फ़ातह-ए-मनेर हज़रत इमाम अल-मुश्तहर ब-ताज-ए-फ़क़ीह के नबीरा और हज़रत मख़दूम जहाँ शेख़ शरफ़ुद्दीन अहमद यहिया मनेरी(رحمة الله علیه) (मुतवफ़्फ़ी 782 हि.)के ख़ानवादा से वाबस्ता हज़रत अबु-यज़ीद मख़दूम शाह दौलत मनेरी (मुतवफ़्फ़ी 1017 हि.) तशरीफ़ रखते हैं, वाज़ेह हो कि ख़ानक़ाह सज्जादिया (दानापुर) इन्हीं बुज़ुर्ग की औलाद-ए-अमजाद से है
मुअल्लिफ़-ए-नजात-ए-क़ासिम लिखते हैं कि:
”ये नंग-ए-ख़ानदान कातिब (मोहम्मद क़ासिम) इस रिसाला का भी औलाद-ए-नाख़लफ़ से इन्हीं हज़रत मख़दूम यहिया मनेरी के है अल-क़िस्सा हज़रत महबूब जल्ल-ओ-इला को ये अहवाल सुन कर मख़दूम शाह दौलत की मुलाक़ात को इश्तियाक़ हुआ” (सफ़हा.-28)
मुअल्लिफ़-ए-आसार-ए-मनेर लिखते हैं कि:
”आप (मख़दूम दौलत मनेरी की बुजु़र्गी का शोहरा सुन कर आपकी ख़िदमत-ए-अक़्दस में आए शरफ़-ए-मुलाक़ात हासिल किया और पहला फ़ैज़ आप ही से लिया जिसके जल्वे ने अबुल-उलाइयत का शोहरा बुलंद कर दिया” (सफ़हा-35)
जब अकबराबाद (आगरा) पहुँचे तो जहांगीर के दरबार में आपके हुस्न-ओ-जमाल के चर्चे होने लगे एक रोज़ दीवान-ए-ख़ास में जहांगीर ने लोगों की आज़माईश की ख़ातिर नारंगी पे निशाना-बाज़ी रखा, ख़याल हुआ कि हज़रत अमीर अबुल-उला को बुलाऊँ चुनांचे हज़रत का पहला निशाना (नारंगी पे) ख़ता कर गया लेकिन दूसरा निशाना दुरुस्त हुआ आपकी इस सुबुक-दस्ती पर सब हैरान थे ख़ुशी के मारे जहांगीर ने एक जाम शराब का आपको बढ़ाया लेकिन आपने नज़र बचाकर शराब को आसतीन में डाल दिया, बादशाह ने गोशाई चशम से देख लिया और कबीदा हो कर कहा कि ये ख़ुद-नुमाईयाँ मुझको पसंद नहीं नश-ए-शराब में बदमसत तो था ही, फिर जाम दिया और हज़रत ने फिर वैसा ही अमल किया, निहायत तुर्श-रू हो कर कहा “क्या तुम ग़ज़ब-ए-सुल्तानी से नहीं डरते हो” बस अब महबूब जल्ल-ओ-इला को जलाल आ गया और फ़रमाया ”मैं ग़ज़ब-ए-ख़ुदा-ओ-ररसूल से डरता हूँ न कि ग़ज़ब-ए-सुलतानी से” नारा मारा सब के सब काँप उठे फिर मर्ज़ी-ए-ख़ुदा दो शेर-ए-ग़ुर्राँ आपके दोनों जानिब नुमूदार हो गए ख़ौफ़-ओ-बदहवास में सारे के सारे लोग भाग खड़े हुए ब-क़ौल नजात-ए-क़ासिम:
ये बैत पढ़ते आप बाहर (दरबार से) निकले
ईं हमा तम-तराक़ कुन-फ़यकुम
ज़र्र-ई नीस्त पेश-ए-अहल-ए-जुनूँ
(अन्फ़ास-उल-आ’रेफ़ीन, सफ़हा-22, नजात-ए-क़ासिम, सफ़हा-33)
ख़्वाजा बुज़ुर्ग हज़रत सय्यद मुईनुद्दीन हसन चिशती (मुतवफ़्फ़ी 633 हि.) के हुक्म से आप अपने अ’म्म-ए-मुअ’ज़्ज़म हज़रत अमीर अबदुल्लाह नक़्शबंदी (मुतवफ़्फ़ी 1033 हि.) से मुरीद –ओ-मजाज़-ए-मुत्लक़ हुए कुछ अर्सा बाद हज़रत अ’म्म-ए-मोहतरम ने ख़िलाफ़त से नवाज़ कर आपको ख़ानदानी (जिद्दी-ओ-मादरी) तबर्रुकात तफ़वीज़ फ़रमाए। (अन्फ़ास-उल-आ’रेफ़ीन, सफ़हा-21)
ब-क़ौल नजात-ए-क़ासिम:
”ब-वक़्त-ए-वफ़ात कि हज़रत अमीर (अबदुल्लाह) ने हज़रत महबूब जल्ल-ओ-इला को अपना सज्जादा-नशीन करके बार अमानत-ए-क़ुत्बियत का आपको तफ़वीज़ किया” (सफ़हा-51)
वाज़ेह हो कि आपको सिलसिल-ए-चिश्तिया की ख़िलाफ़त हज़रत ख़्वाजा बुज़ुर्ग से बराह-ए-रास्त (फ़ैज़-ए-उवैसी) थी जब कोई सिलसिल-ए-चिश्तिया मैं बैअत होना चाहता तो ख़्वाजा बुज़ुर्ग के बाद अपना नाम तहरीर फ़रमाते, हज़रत शाह हयातुल्लाह मुनअमी लिखते हैं:
”मैंने दार-उल-ख़ैर अजमेर में खादिमों के पास अगले वक़्त के शजरे सिलसिला-ए-चिश्तिया अबुल-उलाई के इसी तर्तीब से लिखे हुए देखे” (सफ़हा-114)
इसी तरह हमारे हज़रत ने तालिबों को मा’र्फ़त का जाम पिलाया और ख़ूब पिलाया जिसकी रमक़ आज भी ख़ूब से ख़ूब-तर नज़र आती है
हज़रत सय्यदना अबुल-उला शे’र-ओ-साइरी भी ज़ौक़ रखते थे, ‘सीमाब’ अकबराबादी लिखते हैं:
”आप शाइर थे एक रिसाल-ए-मुख़्तसर जो मसाएल-ए- ‘फ़ना-ओ-बक़ा’ पर मुश्तमिल है आपकी तसनीफ़ से मौजूद है इसके अलावा चंद मक्तूबात और एक मुख़्तसर सा दीवान भी आपकी यादगार है” (कलीम-ए-अजम, सफ़हा-147)
साहिब-ए-‘तज़किरतुल-औलिया-ए-अबुल-उलाई लिखते हैं:
आप ‘इंसान’ तख़ल्लुस किया करते, आप फ़रमाते हैं:
सररिश्ती-ए-नस्ब ब-अली वली रसीद
इंसान तख़ल्लुसम शुद नामम अबुल-उला
(सफ़हा-14)
मुअ’ल्लिफ़-ए-हुज्जत-उल-आ’रेफ़ीन लिखते हैं:
और जो कुछ आँ-हज़रत की अपनी तहरीर हैं, इस कमतरीन की निगाह से गुज़रा है वो एक बैत और एक मिसरा है:
इलाही शेवः-ए-मर्दांगी दह
ज़ना मर्दाँ दीन-ए-बेगांगी दह
मिस्रा: बहर हाली कि बाशी बा-ख़ुदा बाश
और बा’ज़ लोगों का बयान है कि ये शेअर भी इरशाद फ़रमाते थे:
जुदाई मबादा मर अज़ ख़ुदा
दिगर हरचे पेश आयदम शायदम
(सफ़हा-73)
मुअल्लफ़-ए-नजात-ए-क़ासिम लिखते हैं:
हर वक़्त आपकी ज़बान पर एक शे’र मौज़ूँ रहता:
दर्दम अज़ यारस्त व दर मा नीज़ हम
दिल फ़िदाए ऊ शूदा-ओ-जाँ नीज़ हम
(सफ़हा-61)
मुअल्लिफ मिरअतुल-कौनैन कहते हैं: “वज्द-ओ-समाअ’ में बहुत मशग़ूल रहते कभी कभी ग़ायत-ए-जज़बही शौक़ में ये शे’र हाफ़िज़ का पढ़ते:
फ़ैज़-ए-रूहुल-क़ुदुस अर बाज़ मदद फ़रमाएद
दीगराँ हम ब-कुनंद आँ चे मसीहा मी-कर्द
(सफ़हा-418)
आपकी तसनीफ़ात में मशहूर रिसाला फ़ना-ओ-बक़ा है इसके अलावा आपके मुक्तूबात ब-मौसूमा मक्तूबात-ए-अबुल-उला यह बाईस मकातीब पर मुश्तमिल, तिश्नी-ए-तबा है.
हज़रत सय्यदना अमीर अबुल-उला एक मुद्दत तक बीमार रहे जिससे नशिस्त-ओ-बर्ख़ास्त में काफ़ी तकलीफ़ होती थी बीमारी ने तूल खींचा, रोज़ ब-रोज़ कमज़ोर होते गए, आख़िरी अय्याम में आपका खाना-पीना बरा-ए-नाम हो गया, हज़रत अमीर फ़रमाते हैं:
”मैं उस वक़्त ख़िदमत में हाज़िर था लेकिन रात-भर जागने की वजह से कुछ ग़ुनूदगी थी उसी वक़्त मैंने देखा कि हज़रत फ़र्मा रहे हैं, बाबा! मैं अपनी मर्ज़ी से जाता हूँ, सुब्ह तक मैं हूँ फ़ौरन बेदार हो गया कि अभी रात का कुछ हिस्सा बाक़ी है, जैसे ही सुब्ह हुई, आँ-हज़रत की ज़ात-ए-मुबारक में गोया शोरिश बरपा हो गई और ऐसा महसूस हुआ कि आपके हर बुन-ए-मुँह से ज़िक्र-ए-हक़ जारी है, इस कैफ़ीयत में आप वासिल ब-हक हुए”
(हुज्जत-उल-आ’रेफ़ीन, सफ़हा-91, नजात-ए-क़ासिम, सफ़हा-116)
इसी हालत में आपकी रूह पुर-फ़ुतूह, गुलज़ार-ए-जिनाँ और फ़ज़ा-ए-ला-मकाँ की तरफ़ परवाज़ कर गई, यारान-ए-अबुल-उला का हलक़ा हिज्र में तबदील हो गया वो वक़्त-ए-नमाज़-ए-इशराक़ ब-रोज़-ए-सेह-शंबा, 9-सफ़र-उल-मुज़फ़्फ़र, 1061-हि. ब-मुक़ाम अकबराबाद (आगरा) था, ब-क़ौल साहब-ए-तज़किरत-उल-कराम:
हज़रत अमीर अकबराबादी ने क़ता-ए-तारीख़-ए-रहलत कही है
दर सिन्न-ए-अलिफ़ व वाहिद व स्त्तीन
शुद मक़ामश मुक़ाम-ए-इल्लीय्यीन
याफ़्त तारीख़-ए-ऊ दिल-ए-ग़मनाक
”रफ़्त क़ुत्ब-ए-ज़मान ब-आ’लम-पाक
1061-हि.(सफ़हा-661)
हज़रत महबूब-ए-जल्ल-ओ-इला का मज़ार-ए-पुरअनवार आगरा में मरज-ए-ख़लाएक़ है, आस्ताना और अहाता-ए-आस्ताना जन्नत का नज़ारा दिखला रहा है, जहाँ तमाम मज़ाहिब के लोग अपनी मुरादों को ले कर हाज़िर होते हैं और दिल की मुराद पाकर वापस जाते हैं, उर्स-ए-सरापा क़ुदस 9-सफ़र को अज़ीमुश्शान पैमाने पर मनाया जाता है.
(हज़रत शाह मोहम्मद अकबर अबुल-उलाई दानापुरी
आपसे तरीक़त का नक़्शबन्दी अबुल उलाईया सिलसिला ज़ारी है, आपके खलिफ़ा : :
(1) हज़रत सय्यद अमीर नूर उल उला रहमतुल्लाह अलैही ।
(2) हज़रत मीर सय्यद मोहम्मद कालपी रहमतुल्लाह अलैही कालपी शरीफ
(3) हज़रत सैय्यद दोस्त मोहम्मद बुरहाँनपुरी रहमतुल्लाह अलैही (Auranagabad).
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आपका विसाल 9 सफर 1061 हिजरी में हुआ ( Feb- 1651 A.D)
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